EXTRACT FROM ABHIGYAN PRAKASH
ईश्वर प्रकाश और अंधकार दोनों का जनक है। अंधकार और प्रकाश के मध्य समभाव से उसने जीवन को रचा और संतुलित किया है।
यह जानों की उसने स्वयं के सत्यरूप के संतुलित संधान से तुम्हे पाया है और भेद रहित होने के कारण वह तुम्हें पूर्णता से जानता है।
स्मरण रखो की तुम्हें भी उसे पूर्णता से जानने के लिए भेद दृष्टि से मुक्त होकर स्वयं का संतुलित संधान करना होगा। यही ईश्वर और तुम्हारे समागम बिंदू का सत्य है।
तुम ईश्वर के लिए सत्य हो क्योंकि उसने पदार्थ और उससे भिन्न चेतना के एकात्म संधान से तुम्हें पाया है। तुम्हें भी स्वयं के तत्व संधान से उसे पाना है क्योंकि वह तुम्हारा ‘सत्य’ है।
इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझो कि उपरोक्त वर्णित सृजन और विसर्जन के अनंत क्रम में आयामों का विस्तार छिपा है। देखो, अनुभव करो इस अनंत विस्तार को। इसे इस प्रकार देखो और भावित करो जैसे तुम स्वयं को देख रहे हो।
यह सदा स्मरण रखो की तुम्हारी दृष्टि शुद्ध होने से तुम भावात्मक रूप से यह अनुभव करोगे की वह भी तुम्हे वैसे ही देख रहा है जैसे तुम उसे देख रहे हो।
आचार्य कल्याण मित्र
पावन महाराज
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