धर्म और चमत्कार
धर्म और चमत्कार परस्पर विपरीत प्रक्रिया है। धर्म सदा तृष्णा के तत्क्षण और क्षणभंगुर उपादानों का दाहक एवं सत्य के चिरंतन और शाश्वत बीजों का पोषक होता है। चमत्कार इसके विपरीत क्रिया है।
धर्म सत्य संधान की सार्वभौमिक क्रिया है इसके विपरीत चमत्कार प्रपंच बंधनों का नकारात्मक उत्सव।
विषयों की तृष्णा से उत्पन्न अनित्य वस्तुओं के तत्क्षण संग्रह की लालसा और और कर्मसिद्धांत के विपरीत उन लालसाओं की पूर्ति का आस्वासन चमत्कारों की विश्वनीयता स्थापित करने का एक असफल प्रयास है।
स्मरण रखो की धर्माग्नि के संपर्क से इन तत्क्षण उपादानों का भस्म हो जाना निश्चित है क्योकि कर्मण्यता धर्म का लक्षण है और तत्क्षण और क्षणभंगुर उपादानों से उत्पन्न चमत्कारों का भ्रम मनुष्यों को अकर्मण्य बना देता है। सत्य संधान और उसके लक्ष्यों से विलग कर देता है।
वैसे भी धर्म चमत्कार और छद्मावरण के अंतस में नहीं पलता बल्कि चमत्कारों की टोकरी में तो उसका(धर्म का) सड़ जाना तय होता है।
आचार्य कल्याण मित्र
पावन महाराज
Spread the love