आध्यात्मिक दृष्टिकोण

साधकों हेतु तपोभूमि है ‘वसुधा कल्याण आश्रम’।
  • ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ सत्यान्वेषी साधकों द्वारा सत्य के सार्थक अन्वेषणों, अनुसन्धानों के आयोजन हेतु विकसित की गई पंचवटी तपोभूमी है। यह संघमित्रों का वैचारिक तीर्थ है और आदर्श जीवन पद्धति के अवलंबन द्वारा आत्मविस्मृति से आत्मस्मृति की ओर ले जाने वाली यह तपोभूमि सम्पूर्ण मानवजाति हेतु सत्य के साक्षात्कार, आत्मबोध एवं मुक्तिबोध हेतु प्रेरक स्थल है। वसुधा कल्याण के भावबोध से पूर्ण असंख्य संघमित्रों के संघ का वैश्विक संचालक है ‘वसुधा कल्याण आश्रम’।
  • ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ मानव जीवन में अभ्युदय एवं निःश्रेयश के संतुलन को स्थापित करते हुए व्यक्तित्व निर्माण, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्कर्ष, राष्ट्रनिर्माण एवं पर्यावरण सुधार सहित सम्पूर्ण वसुधा की चेतना में ऊर्ध्वगामी परिवर्तनों हेतु निरंतर प्रयासरत है।
  • ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ का समग्र चिंतन और आत्मिक स्वभाव इस दिशा में निरंतर एवं गुणवत्तापूर्ण तरीके से कार्य कर रहा है कि मानव जीवन की गरिमा, उसकी क्षमता, उसके स्वभाव और उसमें निहित अनंत आनंद का विस्तार हो सके। व्यक्ति को व्यक्ति से एवं व्यक्ति को समष्टि से जोड़ने वाली सनातन संस्कृति का वैचारिक आधार देकर मनुष्य को सत्य के स्वाभाविक खोज के प्रति प्रेरित और प्रोत्साहित कर सके।
  • सम्पूर्ण जीवजगत इस ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ के आश्रय में स्वयं के पुरुषार्थ द्वारा आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा बताये गये जीवन चतुष्ट्य ‘विवेक’, ‘वैराग्य’, ‘षट्संपत्तियों’(शम, दम, उपरति, तितिक्षा,श्रद्धा एवं समाधान) को प्राप्त कर आत्मबोध द्वारा मुमुक्षता के भाव को प्राप्त करेगा।
  • महाजागरण, महासमन्वय और महामिलन के इस युग में मित्र परंपरा से पोषित ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ कल्याणभाव से सिंचित संघमित्रों को शक्ति, विचारणा एवं दर्शन से युक्त एवं पुनः परिमार्जित करने हेतु एक वैचारिक धरातल और चैतन्य कसौटी है। सत्य के सन्दर्भ में चेतना के उत्कर्ष एवं ब्रह्मांडीय चेतना से साक्षात्कार संबन्धित मुमुक्षुओं की जिज्ञासाओं के सार्थक समाधान हेतु इस तपोभूमी की आधारशिला रखी गई है।
  • समस्त वसुधा के मुमुक्षुगण इस सत्य को सहज स्वीकार करते हैं कि सम्पूर्ण जगत में ईश्वरीय प्रेरणा से उद्भाषित विचारणा शक्तियों की प्रभुता पूर्णत्व और चैतन्यता को प्राप्त करने अर्थात सत्य के दर्शन से ही स्पष्ट होती है। ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ अपने सामर्थ्य के अनुरूप प्रयासों द्वारा सत्य के इसी वास्तविक दर्शन का उद्घोष कर रहा है।
  • वर्तमान समय में मनुष्यों का वास्तविक चितंन उनके अपरिपक्त्व चित्त के कारण पूर्णत्व को प्राप्त हो पाये या उन्हें सत्य का दर्शन संभव हो इसकी संभावना अत्यंत न्यून दिखाई पड़ती है। मनुष्य केवल बाह्य प्रतिकों एवं अदृश्य मान्यताओं का स्वामित्व स्वीकार कर चुका है। इसके विभिन्न कारण स्पष्ट भी हैं। मनुष्यों का दर्शन के परिपक्त्व भावों से रिक्त होना, दिव्य शाश्वत भावों अर्थात शुद्ध धर्म के प्रति मनुष्यों की जिज्ञासाओं का उचित निराकरण ना हो पाना तथा सनातन जीवन के पवित्र उद्देश्यों और लक्ष्यों की उपेक्षा वर्तमान काल में उनकी अपूर्णता का मूल कारण है।
  • धर्म के विरूद्ध किए गए आचरण के परिणाम स्वरूप समाज, समूह, कार्यक्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र और विश्व किसी ना किसी रुप में अधिकाधिक प्रभावित हैं। प्रत्येक क्षेत्र विभिन्न समस्याओं से घिरा है। ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ मित्रभाव सम्पन्न संघ शक्ति से युक्त होकर सत्य के प्रति अपने कर्तव्यों को चैतन्य विचारणा शक्ति पुंजों के माध्यम से निर्वाहित कर रहा है और प्रत्येक मनुष्य में अहंकार रहित ज्ञान, प्रज्ञा और भक्ति का उन्मेष स्थापित करने हेतु प्रयासरत है।
  • इस सृष्टि में उत्पन्न सम्पूर्ण जीवों का कर्म शुद्ध सनातन जीवन एवं प्रकृति की सेवा मात्र ही है। परंतु धर्म के विपरीत किये गये कर्म सम्पूर्ण सृष्टि के लिये विध्वंसकारी सिद्ध हो रहे हैं। मनुष्यता जड़ता से बंध हो चुकी है। इस विकट समय में “वसुधा कल्याण आश्रम” अपनी विचारणा शक्ति और मित्रभाव सम्पन्न संघ शक्ति के द्वारा परिष्कृत एवं मुक्तिबोध से तृप्त जीवन की उपलब्धि के लिये प्रयासरत है।
  • “वसुधा कल्याण आश्रम” मनुष्यों की परम क्षमता को अनुभूत करते हुए उनकी उच्चतर संभावनाओं को परिणाम में बदलने तथा सूक्ष्म जगत के क्रियाकलापों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये मानव जीवन के कर्मदोषों पर विचार करते हुए साधनात्मक पद्धतियों के अवलंबन द्वारा संस्कृत जीवन शैली की बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहा है। सम्पूर्ण मानवजाति में आदर्श, उत्साह एवं आत्मविश्वास के साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रबंधन स्थापित कर रहा है।
  • ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ सर्वकल्याण की भावना से मानव जीवन को दान, शील, नैष्कर्म्य, प्रज्ञा, वीर्य, क्षान्ति, सत्य, अधिष्ठान, मैत्री और उपेक्षा जैसी पारमिताओं से सुसज्जित करते हुए ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्” एवं “विमुक्तश्च विमुच्यते” जैसी समृद्ध भावनाओं को उत्कृष्टता के शीर्ष पर स्थापित करने हेतु प्रयत्नशील है। मानव जीवन को व्याकुलता, वेदना, एवं द्वंद जैसे विभावों से मुक्ति एवं विवेक, वैराग्य, षट्संपत्तियों एवं मुमुक्षता जैसे समृद्ध भावों का सोपान प्राप्त हो इस दिशा में अपनी विचारणा शक्ति के माध्यम प्रयत्नशील है।
  • “वसुधा कल्याण आश्रम” मानव जीवन में सत्यानुसंधान की सूक्ष्म एवं आध्यात्मिक मनोवृतियों के अनुरूप विचार दीक्षा, प्राण दीक्षा एवं ब्रह्म दीक्षा की सहज अवस्थाओं का उन्मेषक है।
  • सम्पूर्ण मानववाद को सुख, समृद्धि, सामर्थ्य, वैभव, मर्यादा एवं शक्ति जैसी अमूल्य उपलब्धियाँ प्राप्त हो सके। प्रत्येक मनुष्य ईश्वरीय गुणों से सम्पन्न हो जाए तथा वह एक साधारण मानव के रुप में नहीं बल्कि एक महामानव के रुप में अपने धर्म जीवन का समग्र विस्तार एवं निर्वाहन करे। मनुष्य अपने स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण इन तीनों रुपों के विकास को उसके चरम पर स्थापित कर जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सके । “वसुधा कल्याण आश्रम” सहज रूप से अपनी विचारणा शक्ति के माध्यम से इन संकल्पों को पूर्ण करने हेतु प्रयासरत है।
  • मूल रूप से ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ एवं “विमुक्तश्च विमुच्यते” जैसी शाश्वत श्रुतियों को आधार बनाकर संपूर्ण वसुधा के कल्याण का प्रयास कर रहा है। सत्य आधारित संघनिष्ठ संकल्पों द्वारा संचालित यह आश्रम सम्पूर्ण सनातन समृद्धि की अभिव्यक्ति है।
  • “वसुधा कल्याण आश्रम” हमारे स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण शरीर का ही नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से ब्रह्मरूप सत्य का निवास स्थान है। शरीर को प्राप्त होने वाले सुखसाधनों से अलग स्वयं के सत्य की तुष्टि-पुष्टि एवं दर्शन की विधियाँ इस तपोभूमि में प्रचलित हैं।
  • केवल भौतिक समृद्धि की पिपासा संपूर्ण जगत को अबुद्धिमत्तापूर्ण गतिविधियों की तरफ ले जा रही है। माया रूपी अपूर्णता के इस भाव से मुक्ति “वसुधा कल्याण आश्रम” का मौलिक लक्ष्य है। तत्वषोधन की यौगिक क्रियाओं द्वारा आध्यात्मिक प्रवृत्तियों में मन का प्रत्यारोपण कर शरीरसुख की मृगतृष्णा से उत्पन्न अन्धकार इस “वसुधा कल्याण आश्रम” में स्वतः नष्ट हो जाते हैं।
  • इस तपोभूमि पर आत्मउपासना की विधियों एवं संस्कारो द्वारा परिमार्जित सत्य मनुष्य के समक्ष प्रकट हो जाता है। प्रेम, मैत्री, करूणा, दया, समता जैसी विभूतियों के साथ-साथ अन्तःकरण धैर्य, स्थैर्य, सहिष्णुता, उद्यम, उत्साह और अध्यवसाय जैसे महान गुणों से युक्त होकर मनुष्य, संपूर्ण सनातन समृद्धि को प्राप्त करता है। जीवन में भौतिक समृद्धि एवं आध्यात्मिक समृद्धि का संतुलन इस ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ के माध्यम से अंतःकरण के परिमार्जन एवं परिष्कार के फलस्वरूप स्थापित हो जाते हैं।
  • संघ शक्ति से युक्त ‘वसुधा कल्याण आश्रम’ सम्पूर्ण विश्व में ‘कल्याण संघ’ और ‘कल्याण परिवार’ के नाम से भी जाना जाता है और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ एवं “विमुक्तश्च विमुच्यते” जैसे दिव्यतम् भावों का आश्रय लेकर अपने परमार्थिक उद्देश्यों को पूर्ण कर रहा है।
  • “संघे शक्ति युगे युगे” जैसे सनातन श्रुति वाक्य के आधार पर सनातन समाज के संरक्षण, संवर्धन एवं महासमन्वय के लिए, धर्मग्लानी के निवारण के लिए और वेदनिष्ठ संकल्पों की पूर्ति के लिए वैश्विक स्तर पर कल्याणभाव से सिंचित संघमित्रों को संघनिष्ठ कर शक्ति और संयम से युक्त करना।
  • यह भारत भूमि धर्म की भूमि है। ‘कल्याण संघ’ इस ‘धर्मभूमि’ की रक्षा का श्रेष्ठ संकल्प है। इसकी पृष्टभूमि और आंतरिक संरचना ईश्वरीय प्रेरणा से उद्भाषित श्रुतियों के सूक्ष्म चिंतन से प्रकट है।
  • संघमित्रों का निर्भय होना, कर्तव्य और अकर्तव्य का भेद स्पष्ट करते हुए अंतःकरण में श्रद्धा, करुणा, भक्ति, निष्ठा एवं अनुराग अनुशीलन करना, पाप-ताप, दुर्बलता और भीरुता का त्याग कर सदा स्वतंत्र भावों का अबलंबन लेना “कल्याण संघ” रूपी वटवृक्ष का आश्रय प्राप्त करने वाले साधकों की प्रकृत प्रवृति है।
  • इस कलिकाल में हीन और पतित मनुष्यों में “कल्याण संघ” रूपी धर्म वृक्ष के बीजों का रोपण कर सामान्य मानवी में इस धर्म वृक्ष की साधना स्थापित करने के फलस्वरूप समस्त जगत की सुप्त आध्यात्मिक शक्ति जाग जाएगी। अविकसित और अप्रकाशित शक्ति विकसित और प्रकाशित हो जाएगी। त्याग, संयम, सत्य, ब्रह्मचर्य का प्राकट्य हो जाएगा।
  • स्पष्ट रूप से ‘कल्याण संघ‘ संकीर्णता और तुष्टिकरण के विरुद्ध हम सनातन धर्मावलंबियों का प्रतिरोध है। ‘कल्याण संघ’ समग्रता के साथ सहयोगिता की सार्वभौमिक अभिव्यक्ति है। यह साधकों के साधना समुच्य द्वारा सृजित विराट संघ है। यह प्रबल सत्यनिष्ठा की प्रमाणिक परिणति है। यह वैश्विक पारमार्थिक पुण्य है, जो युगों-युगों में पूर्णपुरुषों के द्वारा ईश्वरीय श्रुतियों के परिपेक्ष्य में क्रम से प्रकट होता है। यह कल्याणभाव से सिंचित संघमित्रों का संघ वैश्विक जीवन में अभ्युदय और निःश्रेयस की उपलब्धि द्वारा शुद्ध धर्म को स्थापित करेगा।
  • ‘कल्याण संघ’ अथवा ‘कल्याण परिवार’ “संघे शक्ति युगे युगे” जैसे सनातन श्रुति वाक्यों के आश्रयभूत है। अतः एकमन, एकप्राण, एकभाव, एकशक्ति होकर “कल्याण भाव” में निष्ठा रखकर “वसुधा कल्याण आश्रम” के आदर्शों का विस्तार समस्त जगत में करना मानव जाति की वास्तविक सेवा होगी।