वरुणाराधना जल संरक्षण महाअभियान आग्रह
‘वरुणाराधना’ जल संरक्षण के हेतु एक महाअभियान है इस पुण्य कार्य में हम सामाजिक सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। आप सभी से वसुधा कल्याण आश्रम परिवार यह आग्रह करता है कि इस संदेश को पढ़कर अपने जीवन में इसे क्रियान्वित करें एवं ज्यादा से ज्यादा साझा करें। यथा संभव समय एवं श्रम दान से महाअभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर प्रकृति के प्रति कृतज्ञता अर्पित करें।
“वरुणाराधना” जल संरक्षण महाअभियान से संबंधित आग्रह पत्र के पीडीएफ को स्वयं से संबंधित सभी समूहों (groups) में साझा करें।
- जलाशयों को किसी भी प्रकार से प्रदूषित न करें, ये हमारी तरह ही एक जीवित इकाई हैं। हमारे द्वारा फेके गए कचरे से इनके साथ-साथ इनमें रहने वाले जीवों को बहुत हानि पहुँचती है। इन जलाशयों को सभी प्रकार से सुरक्षित करना मनुष्य जाति का नैतिक कर्तव्य है।
- किसी भी जलाशय के प्रदूषित होने से वहाँ का पारिस्थिकी तंत्र (पर्यावरण तंत्र) बिगड़ जाता है परिणाम स्वरूप तरह-तरह की बिमाड़ियाँ फैलती हैं। जलाशय अगर शुभ और स्वच्छ हो तो आस-पास के निवासियों के समग्र स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है।
- भूमिगत जल की परिशुद्धता का इन जलाशयों से सीधा संबंध है अगर ये जलाशय प्रदूषित हुए तो भूमिगत जल के प्रदूषण से हम कैंसर जैसी गंभीर बिमाड़ियों के भी शिकार होते हैं।
- जलाशय, झील और नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, क्योंकि पूजन अनुष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्टों का एक बड़ा हिस्सा विसर्जन के नाम पर बेहद अमानवीय तरीके से इनमें फेंक दिया जाता है।
- शास्त्रों में पूजन अनुष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्टों के निष्पादन की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई है इसके प्रति स्वयं जागरूक हों और अन्य मित्रों एवं परिजनों को भी जागरूक करें।
- शास्त्रोक्त प्रमाण है कि पंचतत्वों को प्रदूषित करने से हमारे पितृगण अप्रसन्न होते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमें प्रचंड पितृदोष एवं अन्य प्रकार के कोपों का सामना करना पड़ता है, जीवन अभाव, दुःख, दैन्य और पीड़ा से भर जाता है।
- पूजन अनुष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्टों को बहते जल में ही प्रवाहित करना चाहिए अथवा कोई गड्ढ़ा खोदकर उसमें गाड़ सकते हैं। यह सुनिश्चित करें कि अपशिष्टों में प्लास्टिक के पॉलीथिन, शीशा अथवा कोई भी अन्य वस्तु नहीं होने चाहिए। पूजन अनुष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्टों को पॉलीथिन अथवा बोरे में बांधकर नदियों में न फेकें। यह विसर्जन की प्रक्रिया नहीं है।
- प्लास्टिक, शीशा जैसे भगवान के फोटो का फ्रेम आदि अथवा अन्य कोई वस्तु पूजन सामाग्री का हिस्सा नहीं है उसका निस्पादान ठोस कचरे के रूप में किया जाए, पूजन सामाग्री के रूप में नहीं।
- वर्तमान में परिस्थितियों के अनुकूल आपका व्यवहार जलाशयों एवं नदियों को बचा सकता है अतः अपशिष्टों के निष्पादन की अन्य प्रक्रियाओं को भी जानने का प्रयास करें।
- पूजन अनुष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्टों प्लास्टिक के पॉलीथिन आदि को अलग करते हुए उन्हें अपने घर के आस-पास ही गड्ढ़ा खोदकर उसमें गाड़ दें। इस प्रक्रिया को अपनाने से अपशिष्ट स्वतः ही विखंडित होकर मिट्टी बन जाएगा और नदियों एवं जलाशयों का बहुत बड़ा हिस्सा प्रदूषित होने से बच जाएगा।
- किसी भी पूजन में जिसमें मूर्तियों की आवश्यकता होती हो प्रयास करें कि मिट्टी अथवा शुद्ध धातु से बनी प्रतिमाओं(पेंट रहित) का प्रयोग करें। बड़ी मूर्तियाँ, प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियाँ एवं अन्य प्रकार की प्लास्टिक से बनी मूर्तियाँ पर्यावरण के अनुकूल नहीं होती ये सभी नदियों एवं जलाशयों को बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुँचाती हैं।
- मूर्तिकारों से पर्यावरण के अनुकूल(Eco-Friendly) मिट्टी से बनी मूर्तियाँ उपलब्ध कराने को कहें।
- आजकल बड़े-बड़े पूजा-पंडालों में बड़ी-बड़ी मूर्तियों का प्रदर्शन भी जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, इस प्रदर्शन से भी बचना चाहिए लोगों को ऐसा न करने के लिए प्रेरित करें।
- औद्यौगिकरण के इस युग में हमारा यह प्रयास हमारे जीवन को बचाने के लिए ही है क्योंकि इन जलाशयों, झीलों एवं नदियों को स्वच्छता एवं दीर्घायुष्य देकर ही हम मानवजाति के अस्तित्व को सुरक्षित रख सकेंगे।
- स्वयं प्रयास करें एवं अन्य मित्रों को प्रेरित कर इस जल संरक्षण महाअभियान ‘वरुणाराधना’ की सफलता में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करें। आपका एक छोटा सा प्रयास पीढ़ियों को एक प्रकाशवान दीपक की भांति मार्ग दिखाता रहेगा।